US vs China : ट्रंप को पता ही नहीं, वह चीन का भला कर रहे!
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डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) अमेरिका को फिर से महान बनाना चाहते हैं। उन्होंने चीन समेत कई देशों पर भार-भरकम टैरिफ (Trump Tariff) लगा दिया है। कहीं इससे अमेरिका को ही घाटा न हो जाए।
डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) एक बार फिर अपने पुराने रंग में आ गए हैं। उन्होंने चीन (China) के सामानों पर भारी टैक्स (Tariffs) लगाकर वाशिंगटन से बीजिंग तक हलचल मचा दी है। जवाब में चीन ने भी अमेरिका से आयातित सामानों पर 34 प्रतिशत टैरिफ लगाने का ऐलान किया है।
ट्रंप चाहते हैं कि सस्ते चीनी सामान की बाढ़ को रोका जाए ताकि अमेरिका में बने सामान को बढ़ावा मिल सके। खासकर अमेरिका के छोटे कारोबारों को सस्ती चीनी वस्तुओं से नुकसान हो रहा था, जिसे ट्रंप अब रोकना चाहते हैं। इसी के चलते उन्होंने 'de minimis' नाम की नीति भी हटा दी, जिसमें 800 डॉलर से कम के चीनी सामान टैक्स से बच जाते थे। अब हर चीज पर टैक्स लगेगा।
चीन बनाम अमेरिका (US vs China) की इस स्थिति से लगता है कि दुनिया एक नए ट्रेड वॉर (Trade War) की तरफ बढ़ रही है। पहली नजर में यह कदम चीन के लिए झटका लगता है, लेकिन हकीकत कुछ और है। बीजिंग की दीवारों के पीछे की खबरें बताती हैं कि ट्रंप की यह रणनीति उल्टा चीन के लिए नए दरवाजे खोल रही है।
अब अमेरिका ने चीन (US vs China) से आने वाले माल पर करीब 65% टैक्स लगा दिया है। पहले जो छोटे पार्सलों पर छूट मिलती थी, वह भी खत्म कर दी गई है। चीन की अर्थव्यवस्था अब भी लगभग 20% तक निर्यात पर निर्भर है, ऐसे में यह फैसला उसे चोट जरूर पहुंचाएगा, लेकिन वह टूटेगा नहीं।
अमेरिका से लड़ने के लिए तैयार चीन
चीन पहले से कई मुश्किलों से जूझ रहा है। दुनिया महंगाई से परेशान है, जबकि चीन ने कीमतों में जबरदस्त गिरावट देखी है। छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा सामान बेहद सस्ता हो गया। अर्थव्यस्था के लिए यह स्थिति भी खराब होती है।
साथ ही, चीनी सरकार की सख्ती ने निजी कंपनियों को नुकसान पहुंचाया है। लेकिन राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) अब अपनी पॉलिसी को बदल रहे हैं। उन्हें एक मौका चाहिए था, जो ट्रंप ने खुद ही दे दिया।
ट्रंप का नारा MAGA यानी Make America Great Again, लेकिन वहां के तमाम लोग ही इससे खुश नहीं हैं। अमेरिकी कंपनियों पर ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी (Tariff Policy) का नकारात्मक असर पड़ेगा। दूसरी ओर, चीन अब अपने उद्यमियों का ख्याल रख रहा है।
कारोबारियों का डर दूर कर रहा चीन
आप सभी को याद होगा कि कोरोना के दौरान चीन ने अपने सबसे अमीर उद्योगपति जैक मा पर सख्ती की थी। उस समय शी जिनपिंग सरकार की पॉलिसी दूसरी थी। तब सरकार नहीं चाहती थी कि देश में कोई भी पार्टी से ऊपर रहे और एक खास तबका तरक्की करता नहीं दिखना चाहिए।
जैक मा के मामले में शी जिनपिंग का अहंकार भी था। हालांकि पिछले चार-पांच साल में हालात बहुत बदल चुके हैं। चीन की अर्थव्यवस्था अब दुनिया में सबसे तेज नहीं रही। ऐसे में शी अब अपने देश के उद्यमियों को थोड़ी आजादी देने लगे हैं। नीतियों को बदला जा रहा है, कारोबारी सहूलियतें दी जा रही हैं।
यही वजह है कि 2025 में चीन का शेयर बाजार (MSCI इंडेक्स) 15% तक बढ़ गया। यह बताता है कि उद्योग जगत का भरोसा सिस्टम में लौट रहा है। दूसरी ओर, ट्रंप के आने के बाद से अमेरिकी बाजार गिर रहा है। कारोबारी असमंजस में हैं।
दूसरे देशों से रिश्ते सुधारने का मौका
US vs China की इस जंग में चीन के पास एक यह भी मौका है कि वह दूसरे देशों के साथ अपने रिश्ते सुधारे। चीन की इसलिए आलोचना होती है कि वह आक्रामक विस्तारवाद में यकीन रखता है। अमेरिका इसी को मुद्दा बनाता रहा है। चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के नाम पर कई मुल्कों को अपने कर्ज के जाल में फंसाया है।
चीन से कई दूसरे देश इसलिए भी नाराज रहते हैं क्योंकि वह अपने यहां बेहद सस्ते सामान बेचकर दूसरों के बाजार को तबाह कर देता है। अब चीन के पास अपनी छवि सुधारने का मौका है। ट्रंप की कृपा से अमेरिका की छवि भी अब खराब हो रही है। जो आरोप चीन पर लगते रहे हैं, वह अब अमेरिका पर लग रहे हैं।
अमेरिका के बदले रवैये का हवाला देकर चीन दूसरे देशों के साथ संबंध बेहतर कर सकता है। वैसे भी US vs China में ज्यादातर देशों को कोई एक पाला चुनना होगा।
लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं
- चीन (China) के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं। प्रॉपर्टी मार्केट अब भी अस्थिर है और आम लोग घर खरीदने में हिचकिचा रहे हैं।
- चीन में लोकतंत्र समर्थक आवाजें नहीं के बराबर हैं।
- चीन की अर्थव्यवस्था अब पहले जितनी रफ्तार से नहीं बढ़ रही। पूरी दुनिया चीन प्लस वन की पॉलिसी अपना रही है।
- चीन पर आसानी से भरोसा नहीं किया जा सकता। धोखा देने का उसका पुराना इतिहास है।
- अपने लोगों को खर्च करने के लिए शी सरकार उकसा रही है, पर लोग बात मानेंगे क्यों।
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